मैं तो बद था ही, बद से बदनाम भी हुआ
कुछ दाग़ ज़माने से मिले, कुछ मैंने खुद लगाए
मेरा कारवाँ यूँ ही चल रहा था,
गर तेरा दर बीच में न आया होता!
चल तो अब भी यूँ ही रहा हूँ _
बद तो अब भी हूँ, दाग अब भी लग जाते हैं
पर अब जब भी दर पहुँच जाता हूँ तुम्हारे,
मेरी बदनामी गुम हो जाती है
और दाग न जाने कहाँ खो जाते हैं!
और वह समां जो तुम बांधते हो
उसमें मेरा दिल भर आता है,
वह प्याला जो तुम औरों को पिलाते हो
वह मुझे बुलाता है और उसके लिए अनायास
मेरा हाथ बढ़ता है!
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