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Sunday, 10 September 2017
नहीं कोई मंझिल थी मेरी फिर भी तेरा दर पा गया
न थी मेरी आस्था इतनी फिर भी तुझे ढूंढ लिया
मेरे कदमों ने खुद ही तय किया की तू ही मेरी मंज़िल है !
....यह मैंने नहीं किया !
यह कृपा तेरी ही है की मेरा सर तेरे सामने झुक गया है !
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