दरबारे औलिआ तेरे दर पे आ गया हूँ,
जाना तो कहीं और था,तेरे दर पे आ गया हूँ.
जिस राह पर चल रहा था, मंझिल की खबर थी नहीं
जिस और जो चल रहा थ. उसका भी न था कोई गुमां
अब ईस मेरे सफर में जो मोड़ आ गया है,
लाया है मुझको तुम तक , मंझिल का भी पता चल गया है.
दरबारे औलिआ, तेर दर पे आ गया हूँ
जाना था कहीं और था, तेरे दर पे आ गया हुँ.
इसका न यक़ीन था मुझे , जो आज पा गया हूँ,
क्या क्या न मैंने खोया, क्या क्या मैं पा गया हूँ
अब सफर मैं जो भी आये, उसका न कोई डर है,
अब जो भी तू दिलाये, उसमे मेरी बसर है
दरबारे औलिआ , तेर दर पे आ गया हूँ,
जाना तो कहीं और था, तेरे दर पे आ गया हुँ.
---------------------गुरु चरणों में.
----------------------------------------------देवीदास क्रत.