मेरी कोई मंजिल थी नहीं,
पर उनके क़दमों के निशान मिलते गए।
दुनिया से मेरी लड़ाई थी,
मगर ख़ुदा ने रहम करना नहीं छोड़ा।
एक दिन मैंने पुकारा,
तो उन्होंने आवाज़ दी ;
तो उन्होंने आवाज़ दी ;
" मैं हूँ "
सर गया झुक मेरा अपने आप ही,
और मैं डूब गया उनकी उस सदा में ।
…… आज इक अरसा हुआ है,
दुनिया से अब भी मैं लड़ता हूँ,
जो थोड़े बहुत आदर्श रह गए हैं,
उनसे कई बार गिर भी जाता हूँ ;
उनसे कई बार गिर भी जाता हूँ ;
पर फिर भी,
कभी भूले से कोई अच्छा काम हो जाए,
कभी भूले से कोई अच्छा काम हो जाए,
वह अपनी झलक कहीं न कहीं दिखा देते हैं,
वही इक मेरा सहारा बन जाता है।
और मैं तुक बेतुक लिखने लग जाता हूँ
वही मेरी ख़ुशी है,
और मेरे गुरु का दिया हुआ,
बस इक राम नाम ही सम्भाल लेता है मुझे।
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वही इक मेरा सहारा बन जाता है।
और मैं तुक बेतुक लिखने लग जाता हूँ
वही मेरी ख़ुशी है,
और मेरे गुरु का दिया हुआ,
बस इक राम नाम ही सम्भाल लेता है मुझे।
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गुरु चरणों में अर्पित। ....
.... देवीदास कृत।